बैठे बैठे मैं गुलिस्तान भी हो जाता हूँ
By ahmad-kamal-hashmiMay 24, 2024
बैठे बैठे मैं गुलिस्तान भी हो जाता हूँ
चंद मिनटों में बयाबान भी हो जाता हूँ
अपनी आँखों पे यक़ीन आता नहीं है मुझ को
आइना देख के हैरान भी हो जाता हूँ
ऐ चराग़ो मुझे तुम अँख दिखाना छोड़ो
कभी आँधी कभी तूफ़ान भी हो जाता हूँ
मैं रियाज़ी की तरह लगता हूँ मुश्किल लेकिन
थोड़ी कोशिश से मैं आसान भी हो जाता हूँ
मैं किसी बात पे हैरान नहीं होता क्यों
मैं इसी बात पे हैरान भी हो जाता हूँ
भूल जाता हूँ कहीं रख के मैं अक्सर ख़ुद को
ढूँडते ढूँडते हलकान भी हो जाता हूँ
मेरे अंदर भी कभी चलती है ज़हरीली हवा
शहर हूँ पर कभी वीरान भी हो जाता हूँ
अपने होंटों पे लगा लेता हूँ मैं क़ुफ़्ल 'कमाल'
मैं कभी आँख कभी कान भी हो जाता हूँ
चंद मिनटों में बयाबान भी हो जाता हूँ
अपनी आँखों पे यक़ीन आता नहीं है मुझ को
आइना देख के हैरान भी हो जाता हूँ
ऐ चराग़ो मुझे तुम अँख दिखाना छोड़ो
कभी आँधी कभी तूफ़ान भी हो जाता हूँ
मैं रियाज़ी की तरह लगता हूँ मुश्किल लेकिन
थोड़ी कोशिश से मैं आसान भी हो जाता हूँ
मैं किसी बात पे हैरान नहीं होता क्यों
मैं इसी बात पे हैरान भी हो जाता हूँ
भूल जाता हूँ कहीं रख के मैं अक्सर ख़ुद को
ढूँडते ढूँडते हलकान भी हो जाता हूँ
मेरे अंदर भी कभी चलती है ज़हरीली हवा
शहर हूँ पर कभी वीरान भी हो जाता हूँ
अपने होंटों पे लगा लेता हूँ मैं क़ुफ़्ल 'कमाल'
मैं कभी आँख कभी कान भी हो जाता हूँ
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