बाज़ार तिरे शहर के बदनाम बहुत हैं

By chand-akbarabadiOctober 28, 2020
बाज़ार तिरे शहर के बदनाम बहुत हैं
छोटी सी ख़ुशी के भी यहाँ दाम बहुत हैं
मैं कैसे चलूँ हौसले का हाथ पकड़ कर
इस ज़िंदगी में गर्दिश-ए-अय्याम बहुत हैं


होंटों से बग़ावत की सदा कैसे हो जारी
वाइ'ज़ को हुकूमत से अभी काम बहुत हैं
इस दौर में उम्मीद करूँ अद्ल की कैसे
मुंसिफ़ पे ही जब क़त्ल के इल्ज़ाम बहुत हैं


आग़ोश में और वक़्त के बाक़ी हैं सुख़नवर
'ग़ालिब' भी कई 'मीर' भी 'ख़य्याम' बहुत हैं
ये शहर भी महफ़ूज़ नहीं क़हर-ए-ख़ुदा से
साक़ी भी हैं मय-ख़ाने भी हैं जाम बहुत हैं


वो ज़ात है वाहिद वो ही ख़ालिक़ वो ही राज़िक़
मख़्लूक़ ने पर उस को दिए नाम बहुत हैं
इमदाद-ओ-इबादत में रिया-कारी न हो 'चाँद'
इख़्लास-ए-अमल पर वहाँ इनआ'म बहुत हैं


46177 viewsghazalHindi