बज़्म में जो तिरा ज़ुहूर नहीं शम-ए-रौशन के मुँह पे नूर नहीं कितनी बातें बना के लाऊँ एक याद रहती तिरे हुज़ूर नहीं ख़ूब पहचानता हूँ तेरे तईं इतना भी तो मैं बे-शुऊर नहीं क़त्ल ही कर कि उस में राहत है लाज़िम उस काम में मुरूर नहीं फ़िक्र मत कर हमारे जीने का तेरे नज़दीक कुछ ये दूर नहीं फिर जिएँगे जो तुझ सा है जाँ-बख़्श ऐसा जीना हमें ज़रूर नहीं आम है यार की तजल्ली 'मीर' ख़ास मूसा व कोह-ए-तूर नहीं