बनते हैं रोज़ रोज़ फ़साने नए नए
By bhagwan-khilnani-saqiFebruary 26, 2024
बनते हैं रोज़ रोज़ फ़साने नए नए
होते हैं लोग रोज़ दिवाने नए नए
आएँगे इस के बा'द ज़माने नए नए
बर्बादियों के होंगे निशाने नए नए
तन्हाइयों में खोद के दिल और दिमाग़ को
नग़्मों के पाए हम ने ख़ज़ाने नए नए
महफ़िल वही है शम' भी परवाने भी वही
आते हैं लोग रंग जमाने नए नए
वाक़िफ़ नहीं हैं 'इश्क़ के रस्म-ओ-रिवाज से
हम तो हुए हैं तेरे दिवाने नए नए
ग़म से ही दिल में आएगी जज़्बात पर बहार
निकलेंगे फूल बन के तराने नए नए
हर महजबीं के नाज़-ओ-अदा हैं अलग अलग
मिलते हैं 'आशिक़ी के बहाने नए नए
मय-ख़ाना बंद हो गया 'साक़ी' तो क्या हुआ
कर लेंगे मय-गुसार ठिकाने नए नए
होते हैं लोग रोज़ दिवाने नए नए
आएँगे इस के बा'द ज़माने नए नए
बर्बादियों के होंगे निशाने नए नए
तन्हाइयों में खोद के दिल और दिमाग़ को
नग़्मों के पाए हम ने ख़ज़ाने नए नए
महफ़िल वही है शम' भी परवाने भी वही
आते हैं लोग रंग जमाने नए नए
वाक़िफ़ नहीं हैं 'इश्क़ के रस्म-ओ-रिवाज से
हम तो हुए हैं तेरे दिवाने नए नए
ग़म से ही दिल में आएगी जज़्बात पर बहार
निकलेंगे फूल बन के तराने नए नए
हर महजबीं के नाज़-ओ-अदा हैं अलग अलग
मिलते हैं 'आशिक़ी के बहाने नए नए
मय-ख़ाना बंद हो गया 'साक़ी' तो क्या हुआ
कर लेंगे मय-गुसार ठिकाने नए नए
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