बनते खेल बिगड़ जाते हैं धीरे धीरे
By akhtar-malikOctober 24, 2020
बनते खेल बिगड़ जाते हैं धीरे धीरे
सारे लोग बिछड़ जाते हैं धीरे धीरे
सपनों से मत जी बहलाओ देखो लोगो
सपने पीछे पड़ जाते हैं धीरे धीरे
ज़ब्त करो तो बेहतर है दीवानो वर्ना
आँसू ज़ोर पकड़ जाते हैं धीरे धीरे
जितना होता है 'अख़्तर' कोई किसी के पास
इतने फ़ासले बढ़ जाते हैं धीरे धीरे
सारे लोग बिछड़ जाते हैं धीरे धीरे
सपनों से मत जी बहलाओ देखो लोगो
सपने पीछे पड़ जाते हैं धीरे धीरे
ज़ब्त करो तो बेहतर है दीवानो वर्ना
आँसू ज़ोर पकड़ जाते हैं धीरे धीरे
जितना होता है 'अख़्तर' कोई किसी के पास
इतने फ़ासले बढ़ जाते हैं धीरे धीरे
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