बारहा ख़ुद को बदलने का इरादा कर के
By shakeel-azmiFebruary 29, 2024
बारहा ख़ुद को बदलने का इरादा कर के
यार मैं थक गया ये काम ज़ियादा कर के
अपने रहने की जगह भी न मुझे मिल पाई
मैं ने देखा है बहुत ख़ुद को कुशादा कर के
तितलियाँ उड़ गईं लौटा के मोहब्बत मेरी
मैं ने भी छोड़ दिया रंगों को सादा कर के
तेरे न होने से कल रात अँधेरा था बहुत
चाँद भी निकला था बादल को लिबादा कर के
उस ने पैमान-ए-वफ़ा जान लिया मिलने को
मैं कब आया था इधर कोई इरादा कर के
इक बड़ा मा'रका यूँ सर हुआ आसानी से
शाह को काट दिया मैं ने पियादा कर के
यार मैं थक गया ये काम ज़ियादा कर के
अपने रहने की जगह भी न मुझे मिल पाई
मैं ने देखा है बहुत ख़ुद को कुशादा कर के
तितलियाँ उड़ गईं लौटा के मोहब्बत मेरी
मैं ने भी छोड़ दिया रंगों को सादा कर के
तेरे न होने से कल रात अँधेरा था बहुत
चाँद भी निकला था बादल को लिबादा कर के
उस ने पैमान-ए-वफ़ा जान लिया मिलने को
मैं कब आया था इधर कोई इरादा कर के
इक बड़ा मा'रका यूँ सर हुआ आसानी से
शाह को काट दिया मैं ने पियादा कर के
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