बयाँ में तेरे हर तर्ज़-ए-बयाँ गुम फ़साने में मिरे हर दास्ताँ गुम न हम गुम हैं न तेरा आस्ताँ गुम मगर कुछ सिलसिला है दरमियाँ गुम अजब अंदाज़-ए-अज़-ख़ुद-रफ़्तगी है भरी महफ़िल में सब के दरमियाँ गुम रही सहरा-ब-सहरा तेरी मंज़िल हुए मंज़िल-ब-मंज़िल कारवाँ गुम रवाना कारवाँ सालार नापैद सफ़ीना बाद-ए-पैमा बादबाँ गुम क़रीब-ओ-दूर वहम-ए-ना-रसाई कभी मंज़िल कभी ख़ुद कारवाँ गुम हुए 'अंजुम' सहर की जुस्तुजू में मिसाल-ए-लुक्का-ए-अब्र-ए-रवाँ गुम