बे-रोज़गार ही सही ख़ुद्दार मैं भी हूँ

By abdur-rahim-nashtarMay 18, 2024
बे-रोज़गार ही सही ख़ुद्दार मैं भी हूँ
अपनी रह-ए-हयात में दीवार मैं भी हूँ
दो चार साल और है ना-क़द्री-ए-सुख़न
मुर्दा-परस्त शहर का फ़नकार मैं भी हूँ


तश्कीक दिल में सर में जुनूँ लब पे गालियाँ
क्या रूह-ए-अस्र की तरह बीमार मैं भी हूँ
शहर-ए-मुनाफ़िक़त में बसर कर रहा हूँ मैं
लगता है अपने 'अह्द का अवतार मैं भी हूँ


75388 viewsghazalHindi