बे-हिजाबाना वो कल जब बर-सर-ए-महफ़िल गए

By aamir-ataFebruary 25, 2024
बे-हिजाबाना वो कल जब बर-सर-ए-महफ़िल गए
जितने मुरझाए थे चेहरे एक दम से खिल गए
यार वो नाज़ुक है इतना मैं ने उस के आने पर
फ़र्श फूलों का बिछाया पाँव फिर भी छिल गए


जाने उस आवाज़ में कैसी शिफ़ा मौजूद है
उस ने पूछा ठीक हो और ज़ख़्म ख़ुद ही सिल गए
वो जो अपनी बे-तुकी बातों से ही मशहूर है
उस की बातें सुनने को सब शहर के 'आक़िल गए


सिर्फ़ उस के हुस्न की ख़ैरात लेने के लिए
बन के शाहान-ए-ज़माना भी वहाँ साइल गए
बैठे बैठे उस ने नद्दी में डुबोए पाँव और
देखते ही देखते दोनों किनारे मिल गए


अपनी मंज़िल पाने वालों में वही कुछ लोग हैं
रौंद कर अपनी अना जो जानिब-ए-मंज़िल गए
36630 viewsghazalHindi