बेकसी में जो याद घर आया

By hassaan-arfiOctober 31, 2020
बेकसी में जो याद घर आया
आँख के साथ दिल भी भर आया
मेरी मंज़िल न तेरा घर आया
मेरे हिस्से में बस सफ़र आया


इक परी-वश ख़याल पर आया
एक साया सा मुझ में दर आया
मैं ने बैअ'त से कर दिया इंकार
अब के नेज़े पे मेरा सर आया


ज़िंदगी जब ज़वाल पर आई
फ़न मिरा तब उरूज पर आया
ख़ून-ए-दिल से इधर ग़ज़ल लिक्खी
नक़्श तेरा उधर उभर आया


शीश-महलों के भी मुक़द्दर में
आख़िरश देखिए खंडर आया
ख़ुद-कलामी मसीह-ए-जान बनी
कोई मोनिस न चारागर आया


एक बस दिल ही था मिरा अपना
जो तिरे रास्ते में धर आया
कब मिला मुझ को संग-ए-मील तिरा
मैं हर इक राह से गुज़र आया


दर था उम्मीद का खुला 'हस्सान'
सुब्ह का भूला शाम घर आया
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