बे-रुख़ है वो परी दिल-ए-दीवाना क्या करे रो रो के आँख भरती है पैमाना क्या करे दस्त-ओ-ज़बान-ओ-दीदा-ओ-दिल देती हैं दुआ करते हैं वो यगाने कि बेगाना क्या करे कहता ही मुर्ग़-ए-दिल से वो हाल-ए-म्यान-ए-ख़त सब्ज़ा जो दाम हो तो उसे दाना क्या करे बेबस किया है मुझ को सर-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार ने ज़ंजीर पाँव में हो तो दीवाना क्या करे जादू है आँख सुर्मा न क्यूँ-कर रहे ख़मोश सरकश ही ज़ुल्फ़ काँधे न दे शाना क्या करे दिल को न दाग़ दीजिए बोसे की चाट पर जो बेचता न होवे वो बैआ'ना क्या करे