भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा मैं हार गया जंग मगर दिल नहीं हारा रौशन है मिरी उम्र के तारीक चमन में इस कुंज-ए-मुलाक़ात में जो वक़्त गुज़ारा अपने लिए तज्वीज़ की शमशीर-ए-बरहना और उस के लिए शाख़ से इक फूल उतारा कुछ सीख लो लफ़्ज़ों को बरतने का सलीक़ा इस शुग़्ल में गुज़रा है बहुत वक़्त हमारा लब खोले परी-ज़ाद ने आहिस्ता से 'सरवत' जों गुफ़्तुगू करता है सितारे से सितारा