बिछड़ा है कौन मुझ से कहाँ ये ख़बर न दो मुड़ मुड़ के देखना पड़े ऐसा सफ़र न दो दिल की बसीरतों से जो रिश्ता ही तोड़ दे आँखों को मेरी दोस्तो ऐसी नज़र न दो हर शहर और गाँव में जौहर-शनास हैं वा'दे तसल्लियों के ये रंगीं गुहर न दो वो पत्थरों के शहर से आया है लौट कर शीशे के घर कहाँ हैं उसे ये ख़बर न दो नेज़ों पे जो बुलंद रहें वो क़ुबूल हैं क़ातिल के आस्ताँ पे झुकें ऐसे सर न दो मुझ से किसी के नाज़ उठाए न जाएँगे शोहरत मिरी वफ़ा को 'वफ़ा' दर-ब-दर न दो