बिन तिरे दिल के नगर को मैं बसाऊँ कैसे

By abdullah-minhaj-khanAugust 28, 2024
बिन तिरे दिल के नगर को मैं बसाऊँ कैसे
तुझ को दुल्हन मैं बनाऊँ तो बनाऊँ कैसे
ज़िंदगी मुझ को मिरी क़ब्र पे ले आई है
आना चाहूँ मैं तिरे पास तो आऊँ कैसे


बेवफ़ाई की सिफ़त उस की नहीं जाती है
अपने दिल का उसे हमराज़ बनाऊँ कैसे
ऐ ख़ुदा तू ने मिरे 'ऐब छुपा रखे हैं
ऐ ख़ुदा मैं तिरा एहसान चुकाऊँ कैसे


वो तो पत्थर है उसे कुछ न समझ आएगी
दास्ताँ उस को सुनाऊँ तो सुनाऊँ कैसे
जब मिरा रब ही 'अता करता है मुझ को सब कुछ
ग़ैर के दर पे जबीं अपनी झुकाऊँ कैसे


साथ रहता नहीं 'मिनहाज' हमेशा वो भी
मुझ से रूठा है मिरा 'अक्स मनाऊँ कैसे
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