बिना मंज़िल के रस्तों का सफ़र अपना रहा है

By umood-abrar-ahmadMarch 1, 2024
बिना मंज़िल के रस्तों का सफ़र अपना रहा है
मिरे दिल में वो यक-तरफ़ा मोहब्बत ला रहा है
नहीं ये जानता नादानियाँ अपनी हैं उस की
बड़ा बेचैन सा दिल है जो उस पर आ रहा है


नहीं रुकता है रोके से बड़ा मा'सूम दिल है
उसे अपना बनाने पर तुला ही जा रहा है
ग़म-ए-फ़ुर्क़त का अंदाज़ा लगा सकता नहीं वो
तग़ाफ़ुल में कई मौजों से जो टकरा रहा है


कि जब देखा ज़माने में 'अजब 'आलम ये देखा
जिसे देखा वो हसरत में मरा ही जा रहा है
25708 viewsghazalHindi