बुझे बुझे हुए दाग़-ए-जिगर की बात न कर भड़क उठेगा ये शो'ला सहर की बात न कर बस एक बार मोहब्बत से देखने वाले ये वो करम है कि बार-ए-दिगर की बात न कर तरस न जाएँ कहीं रंग-ओ-बू को अहल-ए-चमन गुलों को देख के ज़ख़्म-ए-जिगर की बात न कर मता-ए-दर्द बढ़ा और मुस्कुराए जा शब-ए-फ़िराक़ नुमूद-ए-सहर की बात न कर नया नहीं है ये हंगामा अहल-ए-दिल के लिए सुकूत-ए-आइना-ए-ख़ुद-निगर की बात न कर कहाँ कहाँ से गुज़रना है बे-नियाज़ाना नज़र से देख शुऊर-ए-नज़र की बात न कर ये फूल हैं मिरे 'नश्तर' जिगर के दाग़ नहीं फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-शबनम गुहर की बात न कर