बुझे बुझे हुए दाग़-ए-जिगर की बात न कर

By shakeel-nashtarNovember 19, 2020
बुझे बुझे हुए दाग़-ए-जिगर की बात न कर
भड़क उठेगा ये शो'ला सहर की बात न कर
बस एक बार मोहब्बत से देखने वाले
ये वो करम है कि बार-ए-दिगर की बात न कर


तरस न जाएँ कहीं रंग-ओ-बू को अहल-ए-चमन
गुलों को देख के ज़ख़्म-ए-जिगर की बात न कर
मता-ए-दर्द बढ़ा और मुस्कुराए जा
शब-ए-फ़िराक़ नुमूद-ए-सहर की बात न कर


नया नहीं है ये हंगामा अहल-ए-दिल के लिए
सुकूत-ए-आइना-ए-ख़ुद-निगर की बात न कर
कहाँ कहाँ से गुज़रना है बे-नियाज़ाना
नज़र से देख शुऊर-ए-नज़र की बात न कर


ये फूल हैं मिरे 'नश्तर' जिगर के दाग़ नहीं
फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-शबनम गुहर की बात न कर
54492 viewsghazalHindi