बुर्रिश-ए-तेग़ भी है फूल की महकार भी है

By akhtar-ziaiJune 1, 2024
बुर्रिश-ए-तेग़ भी है फूल की महकार भी है
वो ख़मोशी कि जो सद मौजिब-ए-इज़हार भी है
छोड़िए उन के शब-ओ-रोज़ की रूदाद-ए-ज़ुबूँ
आप को ख़ाक-नशीनों से सरोकार भी है


मस्लहत मुझ को भी मलहूज़ है ऐ हम-सुख़नो
पर मिरे पेश-ए-नज़र वक़्त की रफ़्तार भी है
मौत के ख़ौफ़ से हर साँस रुकी जाती है
ज़िंदगी आज कोई तेरा ख़रीदार भी है


तल्ख़ी-ए-हाल को है इशरत-ए-फ़र्दा का फ़रेब
दिल जुनूँ-कोश है और 'अक़्ल तरहदार भी है
मेरे महबूब मुझे वक़्फ़-ए-तग़ाफ़ुल न समझ
ज़ीस्त के लाख तक़ाज़े हैं तेरा प्यार भी है


अहल-ए-गुफ़्तार की तो भीड़ लगी है 'अख़्तर'
देखना इन में कोई साहब-ए-किरदार भी है
13754 viewsghazalHindi