बुतों की अगर ख़ुद-नुमाई न देखूँ
By pandit-daya-shankar-naseem-lakhnaviNovember 12, 2020
बुतों की अगर ख़ुद-नुमाई न देखूँ
इन आँखों से यारब ख़ुदाई न देखूँ
मोहब्बत से कहता हूँ सी रक्खूँ आँखें
पलक से पलक की जुदाई न देखूँ
भला मैं बुरा जानता हूँ जो तुम को
बुराई है अपनी भलाई न देखूँ
मिरा अक्स तक साफ़ मुझ से नहीं है
मैं हैराँ हूँ किस मुँह से आईना देखूँ
'नसीम' उस चमन के जो काँटों से उलझूँ
मैं उस गुल की रंगीं-अदाई न देखूँ
इन आँखों से यारब ख़ुदाई न देखूँ
मोहब्बत से कहता हूँ सी रक्खूँ आँखें
पलक से पलक की जुदाई न देखूँ
भला मैं बुरा जानता हूँ जो तुम को
बुराई है अपनी भलाई न देखूँ
मिरा अक्स तक साफ़ मुझ से नहीं है
मैं हैराँ हूँ किस मुँह से आईना देखूँ
'नसीम' उस चमन के जो काँटों से उलझूँ
मैं उस गुल की रंगीं-अदाई न देखूँ
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