बुतों की अगर ख़ुद-नुमाई न देखूँ इन आँखों से यारब ख़ुदाई न देखूँ मोहब्बत से कहता हूँ सी रक्खूँ आँखें पलक से पलक की जुदाई न देखूँ भला मैं बुरा जानता हूँ जो तुम को बुराई है अपनी भलाई न देखूँ मिरा अक्स तक साफ़ मुझ से नहीं है मैं हैराँ हूँ किस मुँह से आईना देखूँ 'नसीम' उस चमन के जो काँटों से उलझूँ मैं उस गुल की रंगीं-अदाई न देखूँ