बुतों की अगर ख़ुद-नुमाई न देखूँ

By pandit-daya-shankar-naseem-lakhnaviNovember 12, 2020
बुतों की अगर ख़ुद-नुमाई न देखूँ
इन आँखों से यारब ख़ुदाई न देखूँ
मोहब्बत से कहता हूँ सी रक्खूँ आँखें
पलक से पलक की जुदाई न देखूँ


भला मैं बुरा जानता हूँ जो तुम को
बुराई है अपनी भलाई न देखूँ
मिरा अक्स तक साफ़ मुझ से नहीं है
मैं हैराँ हूँ किस मुँह से आईना देखूँ


'नसीम' उस चमन के जो काँटों से उलझूँ
मैं उस गुल की रंगीं-अदाई न देखूँ
63274 viewsghazalHindi