चाहा जिन को भी ज़िंदगी की तरह

By balbir-rathiOctober 28, 2020
चाहा जिन को भी ज़िंदगी की तरह
वो मिले मुझ को अजनबी की तरह
मुझ को इल्हाम हो गया शायद
बात करता हूँ इक नबी की तरह


जाने कितने सवाल उभरे हैं
जब भी सोचा है फ़लसफ़ी की तरह
सारा मंज़र निखरता जाता है
कौन हँसता है आप ही की तरह


ख़ूब चर्चा है गो सवेरों का
रात फिर भी है रात ही की तरह
वक़्त की बात है कि अब तुम भी
हम से मिलते हो अजनबी की तरह


ये दरिंदों का शहर है इस में
कौन मिलता है आदमी की तरह
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