चैन पड़ता नहीं है सोने में सूइयाँ तो नहीं बिछौने में चेहरा अश्कों से यूँ भिगोने में क्या सुकूँ मिल रहा है रोने में इक नज़र का सवाल होता है इख़्तिलाफ़ात ख़त्म होने में आप इशरत-पसंद क्या जानें वो जो लज़्ज़त है ज़ख़्म धोने में कौन पौदे सदाक़तों के लगाए दिन लगेंगे दरख़्त होने में एक मजबूर की हँसी देखी फ़र्क़ क्या रह गया था रोने में कुछ तो है क़द्र-ए-मुश्तरक 'एहसास' उन को हँसने में मेरे रोने में