चमन में आमद-ए-रंगीनी-ए-नुमू कहिए
By ahmad-adilMay 23, 2024
चमन में आमद-ए-रंगीनी-ए-नुमू कहिए
बहार आने को तज्दीद-ए-रंग-ओ-बू कहिए
मैं गुम हुआ तो मिला है सुराग़ मंज़िल का
इस आगही के सफ़र को ही जुस्तुजू कहिए
नए सफ़र पे गए हम पहुँच के मंज़िल पर
मसाफ़तों के तसलसुल को आरज़ू कहिए
नज़र नज़र ही में अपना मुकालिमा कर के
यूँ बोलती सी ख़मोशी को गुफ़्तुगू कहिए
तलाश ख़ुद को किया जब वही नज़र आया
मिरी तलब को उसी दर की आरज़ू कहिए
मिला है ख़ून-ए-जिगर अपनी अश्क-रेज़ी से
कि आँसुओं को टपकता हुआ लहू कहिए
ज़रा सँभल के ही कीजेगा शा'इरी 'आदिल'
ग़ज़ल की सिंफ़ को उर्दू की आबरू कहिए
बहार आने को तज्दीद-ए-रंग-ओ-बू कहिए
मैं गुम हुआ तो मिला है सुराग़ मंज़िल का
इस आगही के सफ़र को ही जुस्तुजू कहिए
नए सफ़र पे गए हम पहुँच के मंज़िल पर
मसाफ़तों के तसलसुल को आरज़ू कहिए
नज़र नज़र ही में अपना मुकालिमा कर के
यूँ बोलती सी ख़मोशी को गुफ़्तुगू कहिए
तलाश ख़ुद को किया जब वही नज़र आया
मिरी तलब को उसी दर की आरज़ू कहिए
मिला है ख़ून-ए-जिगर अपनी अश्क-रेज़ी से
कि आँसुओं को टपकता हुआ लहू कहिए
ज़रा सँभल के ही कीजेगा शा'इरी 'आदिल'
ग़ज़ल की सिंफ़ को उर्दू की आबरू कहिए
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