चंद लम्हात में सदियों का मज़ा ले आया
By dinesh-kumar-drounaFebruary 17, 2021
चंद लम्हात में सदियों का मज़ा ले आया
या कहूँ बैठे-बिठाए ही बला ले आया
ख़ुद को उलझा के ज़माने के मसाइल में इधर
मैं तिरी याद से अपने को बचा ले आया
आग से आग तो लोहे से कटेगा लोहा
लो नया ज़ख़्म पुराने की दवा ले आया
एक तक़्सीर कि मैं जिस की मुआ'फ़ी के लिए
हर दफ़ा एक नई और सज़ा ले आया
सुर्ख़ आँखें लिए वो अपनी उधर लौट गया
मैं इधर अपना रुवाँसा सा गला ले आया
तुझ को पा कर भी नदामत में मरे जाता हूँ
कि किसी और के हिस्से की वफ़ा ले आया
या कहूँ बैठे-बिठाए ही बला ले आया
ख़ुद को उलझा के ज़माने के मसाइल में इधर
मैं तिरी याद से अपने को बचा ले आया
आग से आग तो लोहे से कटेगा लोहा
लो नया ज़ख़्म पुराने की दवा ले आया
एक तक़्सीर कि मैं जिस की मुआ'फ़ी के लिए
हर दफ़ा एक नई और सज़ा ले आया
सुर्ख़ आँखें लिए वो अपनी उधर लौट गया
मैं इधर अपना रुवाँसा सा गला ले आया
तुझ को पा कर भी नदामत में मरे जाता हूँ
कि किसी और के हिस्से की वफ़ा ले आया
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