चंद लम्हों में मोअम्मा ज़ीस्त का हल कर गया
By mohammad-ali-mauj-rampuriMarch 20, 2021
चंद लम्हों में मोअम्मा ज़ीस्त का हल कर गया
एक दीवाना ख़िरद-मंदों को पागल कर गया
धूप तपती रेत पर दरिया पे बादल कर गया
उस का हर किरदार मेरे ज़ेहन को शल कर गया
बे-असर बे-रब्त लहजा बे-तवाज़ुन गुफ़्तुगू
वो मिला भी तो तबीअत और बोझल कर गया
मस्लहत-आमेज़ बातें अब्र बन कर छा गईं
दिल का सावन इस तरह बरसा कि जल-थल कर गया
मेरी आहट पा के जिस के चौंक उठते थे किवाड़
कोई आज इस घर का दरवाज़ा मुक़फ़्फ़ल कर गया
हर तरफ़ ये आम शोहरत है कि कोई शह-सवार
आज सारे शहर के लोगों को पैदल कर गया
सर्द लहजे में वो मुझ से गुफ़्तुगू करने के बा'द
जब उठा तो रब्त-ए-ज़ेहन-ओ-दिल मोअ'त्तल कर गया
मौज उस चेहरे पे लिखा एक लफ़्ज़-ए-इंतिशार
ख़ुद-फ़रेबी के सभी क़िस्से मुकम्मल कर गया
एक दीवाना ख़िरद-मंदों को पागल कर गया
धूप तपती रेत पर दरिया पे बादल कर गया
उस का हर किरदार मेरे ज़ेहन को शल कर गया
बे-असर बे-रब्त लहजा बे-तवाज़ुन गुफ़्तुगू
वो मिला भी तो तबीअत और बोझल कर गया
मस्लहत-आमेज़ बातें अब्र बन कर छा गईं
दिल का सावन इस तरह बरसा कि जल-थल कर गया
मेरी आहट पा के जिस के चौंक उठते थे किवाड़
कोई आज इस घर का दरवाज़ा मुक़फ़्फ़ल कर गया
हर तरफ़ ये आम शोहरत है कि कोई शह-सवार
आज सारे शहर के लोगों को पैदल कर गया
सर्द लहजे में वो मुझ से गुफ़्तुगू करने के बा'द
जब उठा तो रब्त-ए-ज़ेहन-ओ-दिल मोअ'त्तल कर गया
मौज उस चेहरे पे लिखा एक लफ़्ज़-ए-इंतिशार
ख़ुद-फ़रेबी के सभी क़िस्से मुकम्मल कर गया
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