चौखट पे कि रस्ते पे रखो मेरी बला से
By ahmad-kamal-hashmiMay 24, 2024
चौखट पे कि रस्ते पे रखो मेरी बला से
मेरा वो दिया है नहीं डरता जो हवा से
ये जुर्म-ए-मोहब्बत मैं ने दानिस्ता किया है
दुनिया से कहो मुझ को डराए न सज़ा से
ये मेरे सितमगर का करम कम तो नहीं है
मैं आह जो भरता हूँ तो देता है दिलासे
इस शहर में बस्ते हैं जो बहरे हैं कि मुर्दे
अब दर नहीं खुलता है कोई आह-ओ-बुका से
कुछ लोगों ने मिल-जुल के कुआँ खोद लिया है
कुछ लोग अभी मिन्नतें करते हैं घटा से
दरिया की सख़ावत का भरम खुलने लगा है
कुछ लोग हैं सैराब तो कुछ लोग हैं प्यासे
बीमार ने इस बार यही क़स्द किया है
वो ठीक नहीं होगा दवा से न दु'आ से
मेरा वो दिया है नहीं डरता जो हवा से
ये जुर्म-ए-मोहब्बत मैं ने दानिस्ता किया है
दुनिया से कहो मुझ को डराए न सज़ा से
ये मेरे सितमगर का करम कम तो नहीं है
मैं आह जो भरता हूँ तो देता है दिलासे
इस शहर में बस्ते हैं जो बहरे हैं कि मुर्दे
अब दर नहीं खुलता है कोई आह-ओ-बुका से
कुछ लोगों ने मिल-जुल के कुआँ खोद लिया है
कुछ लोग अभी मिन्नतें करते हैं घटा से
दरिया की सख़ावत का भरम खुलने लगा है
कुछ लोग हैं सैराब तो कुछ लोग हैं प्यासे
बीमार ने इस बार यही क़स्द किया है
वो ठीक नहीं होगा दवा से न दु'आ से
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