छू लिया शो'ला-ए-रुख़्सार-ए-सनम देखो तो
By akhtar-gwalioriOctober 28, 2024
छू लिया शो'ला-ए-रुख़्सार-ए-सनम देखो तो
कितने ना-आक़िबत-अँदेश हैं हम देखो तो
कोई शिकवा है न फ़रियाद न ग़म देखो तो
जाने अब कौन सी मंज़िल पे हैं हम देखो तो
रंज-ओ-आलाम की जलती हुई दोपहरों में
तुम भी चल कर कभी दो-चार क़दम देखो तो
डूबी डूबी सी नज़र आती है क्यों नब्ज़-ए-हयात
आज क्या बात है क्यों दर्द है कम देखो तो
दीदा-ओ-दिल में लिए फिरते हैं हम आग ही आग
तुम को अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल की क़सम देखो तो
क्या किसी रिंद का दिल तोड़ दिया ज़ाहिद ने
क्यों लरज़ने लगी दीवार-ए-हरम देखो तो
हम से ता'मीर-ए-ज़माना है हमीं पर यारो
तोड़े जाते हैं ज़माने के सितम देखो तो
उन को एहसास है अक्सर मेरी बर्बादी का
किस बुलंदी पे है अब क़िस्मत-ए-ग़म देखो तो
कितने ना-आक़िबत-अँदेश हैं हम देखो तो
कोई शिकवा है न फ़रियाद न ग़म देखो तो
जाने अब कौन सी मंज़िल पे हैं हम देखो तो
रंज-ओ-आलाम की जलती हुई दोपहरों में
तुम भी चल कर कभी दो-चार क़दम देखो तो
डूबी डूबी सी नज़र आती है क्यों नब्ज़-ए-हयात
आज क्या बात है क्यों दर्द है कम देखो तो
दीदा-ओ-दिल में लिए फिरते हैं हम आग ही आग
तुम को अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल की क़सम देखो तो
क्या किसी रिंद का दिल तोड़ दिया ज़ाहिद ने
क्यों लरज़ने लगी दीवार-ए-हरम देखो तो
हम से ता'मीर-ए-ज़माना है हमीं पर यारो
तोड़े जाते हैं ज़माने के सितम देखो तो
उन को एहसास है अक्सर मेरी बर्बादी का
किस बुलंदी पे है अब क़िस्मत-ए-ग़म देखो तो
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