छुपाते रहते हैं दुख-दर्द रो नहीं पाते

By sajid-raheemFebruary 28, 2024
छुपाते रहते हैं दुख-दर्द रो नहीं पाते
ये वो जहाँ है जहाँ मर्द रो नहीं पाते
वो ख़ुश्क-साली है अब के कि दुख में भी हम लोग
सरों में डाल तो लें गर्द रो नहीं पाते


अब इस समाज को नुक्ता ये कौन समझाए
रुलाने लगते हैं जो मर्द रो नहीं पाते
शजर क़बीला है अपना सो हम से जो बिछड़े
हरे से होते हैं हम ज़र्द रो नहीं पाते


सताती रहती थी हम को तलब मोहब्बत की
वो आग जब से हुई सर्द रो नहीं पाते
बढ़ा चढ़ा के बताता हूँ उन को अपना दुख
मैं क्या करूँ मिरे हमदर्द रो नहीं पाते


मज़ाक़ उड़ाने की लोगों को ऐसी 'आदत है
कि मर भी जाए कोई फ़र्द रो नहीं पाते
50397 viewsghazalHindi