चोट दिल को जो लगे आह-ए-रसा पैदा हो सदमा शीशे को जो पहुँचे तो सदा पैदा हो कुश्ता-ए-तेग़-ए-जुदाई हूँ यक़ीं है मुझ को उज़्व से उज़्व क़यामत में जुदा पैदा हो हम हैं बीमार-ए-मोहब्बत ये दुआ माँगते हैं मिस्ल-ए-इक्सीर न दुनिया में दवा पैदा हो कह रहा है जरस-ए-क़ल्ब ब-आवाज़-ए-बुलंद गुम हो रहबर तो अभी राह-ए-ख़ुदा पैदा हो किस को पहुँचा नहीं ऐ जान तिरा फ़ैज़-ए-क़दम संग पर क्यूँ न निशान-ए-कफ़-ए-पा पैदा हो मिल गया ख़ाक में पिस पिस के हसीनों पर मैं क़ब्र पर बोएँ कोई चीज़ हिना पैदा हो अश्क थम जाएँ जो फ़ुर्क़त में तो आहें निकलें ख़ुश्क हो जाए जो पानी तो हवा पैदा हो याँ कुछ अस्बाब के हम बंदे ही मुहताज नहीं न ज़बाँ हो तो कहाँ नाम-ए-ख़ुदा पैदा हो गुल तुझे देख के गुलशन में कहें उम्र दराज़ शाख़ के बदले वहीं दस्त-ए-दुआ' पैदा हो बोसा माँगा जो दहन का तो वो क्या कहने लगे तू भी मानिंद-ए-दहन अब कहीं ना पैदा हो न सर-ए-ज़ुल्फ़ मिला बलबे दराज़ी तेरी रिश्ता-ए-तूल-ए-अमल का भी सिरा पैदा हो किस तरह सच है न ख़ुर्शेद को रजअ'त हो जाए तुझ सा आफ़ाक़ में जब माह-लक़ा पैदा हो अभी ख़ुर्शेद जो छुप जाए तो ज़र्रात कहाँ तू ही पिन्हाँ हो तो फिर कौन भला पैदा हो क्या मुबारक है मिरा दस्त-ए-जुनूँ ऐ 'नासिख़' बैज़ा-ए-बूम भी टूटे तो हुमा पैदा हो