चुपके चुपके एक तो टीस आप जमानी औरों से तिस उल्टी हम को तोहमत आ के लगानी औरों से हम से तो बस बाँधे रखती शर्म की पट्टी आँखों पर चोरी चोरी महफ़िल में पर आँख लड़ानी औरों से औरों के तो हम से न कहने हम से ले कर जी की बात जूँ की तूँ सब बात ये क्यूँ जी जा के सुनानी औरों से मुझ से कहो हो आहें भर भर हूक जिगर में उठती है और यूँही दर-पर्दा अपनी चाह जतानी औरों से लौंग खिलाएँ हम जो कभी तो उस को डालो मुँह से थूक और ये क्यूँ जी रोज़ मुफ़र्रेह छींके खानी औरों से औरों के तो घर में जा कर दौड़ के पीनी आप शराब मेरे आगे पी नहीं सकते माँग के पानी औरों से हम जो पढ़ें कोई शे'र तो कहना शे'र से हम को ज़ौक़ नहीं 'मीर'-हसन के घर में कहानी जा के पढ़ानी औरों से पर्दा इस में क्या है प्यारे दुनिया में 'मारूफ़' है ये आशिक़ से है बैर तुझे और उल्फ़त जानी औरों से