क़फ़स को तोड़ के मैं बाल-ओ-पर भी देखूँगा
By jawed-manzarNovember 2, 2020
क़फ़स को तोड़ के मैं बाल-ओ-पर भी देखूँगा
जो बाल-ओ-पर हों सलामत तो घर भी देखूँगा
फिर इस के बाद न कहना सदा-ब-सहरा थी
मैं अपनी बात का तुझ पर असर भी देखूँगा
यहाँ तो सब ही पुरानी रविश पे चलते हैं
मैं अब बना के नई रह-गुज़र भी देखूँगा
मिलूँगा तुम से तो माँगूँगा रोज़-ओ-शब का हिसाब
रहूँगा घर में तो फिर बाम-ओ-दर भी देखूँगा
मैं ख़ुश बहुत था बहारों के दरमियाँ मंज़र
ख़बर न थी कि ख़िज़ाँ का गुज़र भी देखूँगा
जो बाल-ओ-पर हों सलामत तो घर भी देखूँगा
फिर इस के बाद न कहना सदा-ब-सहरा थी
मैं अपनी बात का तुझ पर असर भी देखूँगा
यहाँ तो सब ही पुरानी रविश पे चलते हैं
मैं अब बना के नई रह-गुज़र भी देखूँगा
मिलूँगा तुम से तो माँगूँगा रोज़-ओ-शब का हिसाब
रहूँगा घर में तो फिर बाम-ओ-दर भी देखूँगा
मैं ख़ुश बहुत था बहारों के दरमियाँ मंज़र
ख़बर न थी कि ख़िज़ाँ का गुज़र भी देखूँगा
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