दम-ब-दम सीना-ए-हस्ती में सिनाँ टूटती है
By abid-razaFebruary 17, 2025
दम-ब-दम सीना-ए-हस्ती में सिनाँ टूटती है
देखना ये है कि अब साँस कहाँ टूटती है
इक मोहब्बत कि बचा रक्खी थी दिल में कब से
वो सुराही भी मिरे तिश्ना-दहाँ टूटती है
ढूँढ़ ही लेगी उफ़ुक़ पार फ़लक-ज़ाद की आँख
इक सियह ग़ार जहाँ काहकशाँ टूटती है
नग़्मा-सामाँ 'अजब अंदाज़ से है साज़-ए-अजल
सुर सिमटते हैं जहाँ तान वहाँ टूटती है
आख़िरी तीर चलाना है ख़ुद अपनी जानिब
लेकिन इस बार इरादों की कमाँ टूटती है
दूर इक याद के साहिल पे है वो माह-ए-तमाम
फ़ासला इतना कि बस आस-ए-जहाँ टूटती है
देखना ये है कि अब साँस कहाँ टूटती है
इक मोहब्बत कि बचा रक्खी थी दिल में कब से
वो सुराही भी मिरे तिश्ना-दहाँ टूटती है
ढूँढ़ ही लेगी उफ़ुक़ पार फ़लक-ज़ाद की आँख
इक सियह ग़ार जहाँ काहकशाँ टूटती है
नग़्मा-सामाँ 'अजब अंदाज़ से है साज़-ए-अजल
सुर सिमटते हैं जहाँ तान वहाँ टूटती है
आख़िरी तीर चलाना है ख़ुद अपनी जानिब
लेकिन इस बार इरादों की कमाँ टूटती है
दूर इक याद के साहिल पे है वो माह-ए-तमाम
फ़ासला इतना कि बस आस-ए-जहाँ टूटती है
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