डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम हर दम पनाह माँगते हैं हर बला से हम मा'शूक़ जा-ए-हूर मिले मय बजाए आब महशर में दो सवाल करेंगे ख़ुदा से हम गर तू किसी बहाने आ जाए वक़्त-ए-नज़अ' ज़ालिम करें हज़ार बहाने क़ज़ा से हम गो हाल-ए-दिल छुपाते हैं पर इस को क्या करें आते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद नज़र इक मुब्तला से हम नाचार इख़्तियार किया शेवा-ए-रक़ीब कुछ बे-हयाई ख़ूब हैं गुज़रे हया से हम माँगी न होगी ख़िज़्र ने यूँ उम्र-ए-जावेदाँ क्या अपनी मौत माँगते हैं इल्तिजा से हम देखें तो पहले कौन मिटे उस की राह में बैठे हैं शर्त बाँध के हर नक़्श-ए-पा से हम मजबूर अपनी शेवा-ए-शर्म-ओ-हया से तुम नाचार इज़्तिराब-ए-दिल-ए-मुब्तला से हम ये आरज़ू है आँख में सुर्मा लगाएँगे ऐ 'दाग़' ख़ाक-ए-पा-ए-रसूल-ए-ख़ुदा से हम