दश्त की प्यास किसी तौर बुझाई जाती कोई तस्वीर ही पानी की दिखाई जाती एक दरिया चला आया है मिरे साथ इसे रोकने के लिए दीवार उठाई जाती हम नए नक़्श बनाने का हुनर जानते हैं ऐसा होता तो नई शक्ल बनाई जाती अब ये आँसू हैं कि रुकते ही नहीं हैं हम से दिल की आवाज़ ही पहले न सुनाई जाती सिर्फ़ आज़ार उठाने की हमें आदत है हम पे साया नहीं दीवार गिराई जाती