दश्त से पत्थर उठा कर शहर में लाए हो क्यों
By asrar-akbarabadiJuly 31, 2020
दश्त से पत्थर उठा कर शहर में लाए हो क्यों
ये लहू माँगेंगे तुम से ख़ुद पे इतराए हो क्यों
ख़ुश्क है दिल का कँवल साँसों में ग़म की आग है
जब बरसना ही नहीं है बादलों छाए हो क्यों
मय के साग़र हैं अगर ग़म को मिटाने का इलाज
ऐ नए मौसम के फूलो पी के मुरझाए हो क्यों
अब तो ख़ामोशी तुम्हारी ख़ार सी चुभने लगी
चुप ही रहना था बताओ फिर यहाँ आए हो क्यों
शब की मारी बस्तियों के हर दर-ओ-दीवार पर
धूप तो सूरज की है तुम ख़ुद पे इतराए हो क्यों
हाथ में है हाथ मौसम मस्त-ए-गुल महके हुए
देखने पर मेरे फिर तुम मुझ से शरमाए हो क्यों
ये हैं ऐसी वादियाँ दरिया भी हैं जिन के सराब
लोग हैं प्यासे यहाँ 'असरार' तुम आए हो क्यों
ये लहू माँगेंगे तुम से ख़ुद पे इतराए हो क्यों
ख़ुश्क है दिल का कँवल साँसों में ग़म की आग है
जब बरसना ही नहीं है बादलों छाए हो क्यों
मय के साग़र हैं अगर ग़म को मिटाने का इलाज
ऐ नए मौसम के फूलो पी के मुरझाए हो क्यों
अब तो ख़ामोशी तुम्हारी ख़ार सी चुभने लगी
चुप ही रहना था बताओ फिर यहाँ आए हो क्यों
शब की मारी बस्तियों के हर दर-ओ-दीवार पर
धूप तो सूरज की है तुम ख़ुद पे इतराए हो क्यों
हाथ में है हाथ मौसम मस्त-ए-गुल महके हुए
देखने पर मेरे फिर तुम मुझ से शरमाए हो क्यों
ये हैं ऐसी वादियाँ दरिया भी हैं जिन के सराब
लोग हैं प्यासे यहाँ 'असरार' तुम आए हो क्यों
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