दास्तान-ए-हिज्र क्या है ख़ूँ-चकाँ तेरे बग़ैर एक पल है सौ बरस ऐ जान-ए-जाँ तेरे बग़ैर क्या सुनाऊँ हाल-ए-दिल ऐ महव-ए-ख़्वाब-ए-इज़्ज़-ओ-नाज़ हो चुकी है ज़िंदगी वक़्फ़-ए-फ़ुग़ाँ तेरे बग़ैर दीदनी है हुस्न-ए-फ़ितरत पर हमारे वास्ते ये बहार-ए-रूह-परवर है ख़िज़ाँ तेरे बग़ैर है शुमार-ए-आमद-ओ-रफ़्त-ए-नफ़स का मश्ग़ला बन गई है ज़िंदगी इक चीसताँ तेरे बग़ैर तुझ से क्या छूटे कि हम सारे जहाँ से छुट गए हो गए हैं यूसुफ़-ए-बे-कारवाँ तेरे बग़ैर ये शब-ए-फ़ुर्क़त तो काटे से भी कटने को नहीं रुक गई हो जैसे ये उम्र-ए-रवाँ तेरे बग़ैर ख़ौफ़ लगता है मुझे लिल्लाह तू भी साथ चल मिल रहा है ख़ाक में इक नौजवाँ तेरे बग़ैर आ कि दुनिया मुंतज़िर है कब से इस्तिक़बाल को हर ज़बाँ पर अल-अमाँ है ऐ अमाँ तेरे बग़ैर मिस्ल-ए-तूती कल चहकता था वो बज़्म-ए-नाज़ में आज गुम है 'मज़हर'-ए-शीरीं-ज़बाँ तेरे बग़ैर