देखने को फूल में मशग़ूल है

By aarif-nazeerJuly 30, 2024
देखने को फूल में मशग़ूल है
ख़ार दामन में हैं सर पे धूल है
एक तो लहजा तिरा है ना-रवा
उस पे तेरी बात ना-मा'क़ूल है


गिर्या-ओ-मातम है साहब ज़िंदगी
मुस्कुराना आदमी की भूल है
जाने वाले लोग कब के जा चुके
धूल है अब राह में बस धूल है


हैं ग़लत ये आप की ख़ुश-फ़हमियाँ
मुस्कुराना तो मिरा मा'मूल है
खा गईं उस को भी ये गुम-नामियाँ
छोड़िए 'आरिफ़' कहाँ मक़्बूल है


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