देखने में लगती थी भीगती सिमटती रात
By ali-akbar-abbasOctober 24, 2020
देखने में लगती थी भीगती सिमटती रात
फैलती गई लेकिन बूँद बूँद बटती रात
तितलियाँ पकड़ने का आ गया ज़माना याद
तेज़ तेज़ बढ़ते हम दूर दूर हटती रात
क्यूँ पहाड़ जैसा दिन ख़ाक में मिला डाला
पहले सोच लेते तो गर्द में न अटती रात
प्यार से किया रुख़्सत एक इक सितारे को
छा रही फिर आँखों में आसमाँ से छटती रात
इक सदा की सूरत हम इस हवा में ज़िंदा हैं
हम जो रौशनी होते हम पे भी झपटती रात
फैलती गई लेकिन बूँद बूँद बटती रात
तितलियाँ पकड़ने का आ गया ज़माना याद
तेज़ तेज़ बढ़ते हम दूर दूर हटती रात
क्यूँ पहाड़ जैसा दिन ख़ाक में मिला डाला
पहले सोच लेते तो गर्द में न अटती रात
प्यार से किया रुख़्सत एक इक सितारे को
छा रही फिर आँखों में आसमाँ से छटती रात
इक सदा की सूरत हम इस हवा में ज़िंदा हैं
हम जो रौशनी होते हम पे भी झपटती रात
56273 viewsghazal • Hindi