दिल जलाने से कहाँ दूर अंधेरा होगा रात ये वो है कि मुश्किल से सवेरा होगा क्यूँ न अब वज़-ए-जुनूँ तर्क करें लौट चलें उस से आगे जो है जंगल वो घनेरा होगा ये ज़रूरी तो नहीं इतना भी ख़ुश-फ़हम न बन वो ज़माना जो न मेरा है न तेरा होगा इतना भी संग-ए-मलामत से डरा मत नासेह सर सलामत है तो इस शहर का फेरा होगा ख़िदमत-ए-राज-महल पर उन्हें देखा मामूर जो ये कहते थे कि सरदार बसेरा होगा राह-ए-पुर-पेच को सहल इतना बताने वाला राहबर हो नहीं सकता है लुटेरा होगा वो भी इंसान है ऐ दिल उसे इल्ज़ाम न दे जाने उस को भी किन आफ़ात ने घेरा होगा