दिल की एक इक कनी बिछाती हूँ रात-भर रौशनी बिछाती हूँ शायद आज आए वो मुझे मिलने सहन में चाँदनी बिछाती हूँ देखिए डूबता हुआ सूरज बैठिए ओढ़नी बिछाती हूँ ओढ़ लेती हूँ हिज्र बिस्तर पर अपनी ख़स्ता-तनी बिछाती हूँ ख़ुद तो रहती हूँ धूप में 'जानाँ' उस पे छाँव घनी बिछाती हूँ