दिल की एक इक कनी बिछाती हूँ
By janan-malikNovember 2, 2020
दिल की एक इक कनी बिछाती हूँ
रात-भर रौशनी बिछाती हूँ
शायद आज आए वो मुझे मिलने
सहन में चाँदनी बिछाती हूँ
देखिए डूबता हुआ सूरज
बैठिए ओढ़नी बिछाती हूँ
ओढ़ लेती हूँ हिज्र बिस्तर पर
अपनी ख़स्ता-तनी बिछाती हूँ
ख़ुद तो रहती हूँ धूप में 'जानाँ'
उस पे छाँव घनी बिछाती हूँ
रात-भर रौशनी बिछाती हूँ
शायद आज आए वो मुझे मिलने
सहन में चाँदनी बिछाती हूँ
देखिए डूबता हुआ सूरज
बैठिए ओढ़नी बिछाती हूँ
ओढ़ लेती हूँ हिज्र बिस्तर पर
अपनी ख़स्ता-तनी बिछाती हूँ
ख़ुद तो रहती हूँ धूप में 'जानाँ'
उस पे छाँव घनी बिछाती हूँ
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