दिल में यूँ चाह का अरमाँ न हुआ था सो हुआ जिस की ख़ातिर मैं परेशाँ न हुआ था सो हुआ वो भी क्या दिन थे कि जब राहत-ए-जाँ था कोई वक़्त भी मुझ से गुरेज़ाँ न हुआ था सो हुआ किस को है ताब-ए-निगाही तिरा जल्वा देखे आइना ख़ुद भी तो हैराँ न हुआ था सो हुआ ग़म-गुसारी के लिए अब नहीं आता है कोई ज़ख़्म भर जाने का इम्काँ न हुआ था सो हुआ ये भी एजाज़-ए-मोहब्बत है कि वो शोख़ कभी वज्ह-ए-तसकीन-ए-दिल-ओ-जाँ न हुआ था सो हुआ जल उठीं दिल में तिरी याद की शमएँ आख़िर इस ख़राबे में चराग़ाँ न हुआ था सो हुआ उस की ख़्वाहिश कहूँ या अपनी तमन्ना 'नादिर' बज़्म में उस की ग़ज़ल-ख़्वाँ न हुआ था सो हुआ