दिल न दे साथ तो ग़म कैसे सहा जाएगा
By asrar-zaidiOctober 27, 2020
दिल न दे साथ तो ग़म कैसे सहा जाएगा
कि उसी घर में ये सैलाब-ए-बला जाएगा
इक मुसाफ़िर है वो उस की कोई मंज़िल ही नहीं
जिस तरफ़ भी क़दम उट्ठेंगे चला जाएगा
मैं तो इस जब्र-ए-मुसलसल में भी लब-बस्ता नहीं
यूँ समझ ले तिरा हर तीर ख़ता जाएगा
बर्फ़ पिघलेगी तो मौसम भी बदल जाएँगे
पौ फटेगी तो उजाला नज़र आ जाएगा
लम्हा लम्हा मिरे होने की गवाही देगा
पत्ते पत्ते पे मिरा नाम लिखा जाएगा
रूह का ज़ख़्म है इस पर कोई मरहम न लगा
ज़हर फैलेगा तो नस नस में समा जाएगा
कि उसी घर में ये सैलाब-ए-बला जाएगा
इक मुसाफ़िर है वो उस की कोई मंज़िल ही नहीं
जिस तरफ़ भी क़दम उट्ठेंगे चला जाएगा
मैं तो इस जब्र-ए-मुसलसल में भी लब-बस्ता नहीं
यूँ समझ ले तिरा हर तीर ख़ता जाएगा
बर्फ़ पिघलेगी तो मौसम भी बदल जाएँगे
पौ फटेगी तो उजाला नज़र आ जाएगा
लम्हा लम्हा मिरे होने की गवाही देगा
पत्ते पत्ते पे मिरा नाम लिखा जाएगा
रूह का ज़ख़्म है इस पर कोई मरहम न लगा
ज़हर फैलेगा तो नस नस में समा जाएगा
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