दिल-ओ-दिमाग़ जलाए हैं इस 'अमल के लिए

By akhtar-gwalioriOctober 28, 2024
दिल-ओ-दिमाग़ जलाए हैं इस 'अमल के लिए
नई ज़मीन निकाली नई ग़ज़ल के लिए
नफ़ासतों में भी अपनी मिसाल आप हैं हम
गुलों के बोसे भी हम ने सँभल सँभल के लिए


सफ़र में रहते हैं हर-वक़्त ख़ुशबुओं की तरह
सुकूँ मिला न कहीं हम को एक पल के लिए
ये राह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा है यहाँ का मस्लक है
क़दम क़दम रहो तय्यार तुम अजल के लिए


हवा में इस क़दर तेज़ाबियत समाई है
कि शाख़ शाख़ तरसती है फूल-ओ-फल के लिए
हरे भरे हैं हर इक हाल में वो ऐ 'अख़्तर'
क़लंदरों को कोई ग़म नहीं है कल के लिए


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