दिल-रुबा मुझ को तिरी मजबूरियाँ अच्छी लगीं

By aatish-muradabadiJune 11, 2024
दिल-रुबा मुझ को तिरी मजबूरियाँ अच्छी लगीं
'इश्क़ जब हद से बढ़ा तो दूरियाँ अच्छी लगीं
उस ने पहले रात दिन ही ख़ूब तड़पाया मुझे
सामने जब आ गया तो शोख़ियाँ अच्छी लगीं


धूप की शिद्दत में सारा दिन गुज़ारा है मगर
मुझ को मेहनत से मिली दो रोटियाँ अच्छी लगीं
देख कर मुझ को परेशाँ जिन को मिलती है ख़ुशी
मेरे पैरों में पड़ीं ये बेड़ियाँ अच्छी लगीं


हाल-ए-दिल मैं ने सुनाया उस को राहत मिल गई
लम्हा लम्हा उस को मेरी सिसकियाँ अच्छी लगीं
आग के लावे में 'आतिश' जल रही थीं झुग्गियाँ
हुक्मरानों को भी उस दम कुर्सियाँ अच्छी लगीं


35168 viewsghazalHindi