दिल तो क्या जाँ से गुज़रना आया
By abdul-qavi-ziyaApril 24, 2024
दिल तो क्या जाँ से गुज़रना आया
जी उठे लोग जो मरना आया
सर्फ़ जब तक न हुआ दिल का लहू
हर्फ़ में रंग न भरना आया
हो गए सारे समुंदर पायाब
जब हमें पार उतरना आया
फ़स्ल-ए-गुल आई तो हर ग़ुंचे को
ज़ख़्म की तरह निखरना आया
जो नफ़स था वो रहा गर्म-ए-सफ़र
कब मुसाफ़िर को ठहरना आया
इक गुल-ए-तर की मोहब्बत में हमें
कितने काँटों से गुज़रना आया
वो अदब 'इश्क़ ने बख़्शा कि हमें
मुद्दतों बात न करना आया
दिल पे अपने जो पड़ी ज़र्ब 'ज़िया'
टूट कर हम को बिखरना आया
जी उठे लोग जो मरना आया
सर्फ़ जब तक न हुआ दिल का लहू
हर्फ़ में रंग न भरना आया
हो गए सारे समुंदर पायाब
जब हमें पार उतरना आया
फ़स्ल-ए-गुल आई तो हर ग़ुंचे को
ज़ख़्म की तरह निखरना आया
जो नफ़स था वो रहा गर्म-ए-सफ़र
कब मुसाफ़िर को ठहरना आया
इक गुल-ए-तर की मोहब्बत में हमें
कितने काँटों से गुज़रना आया
वो अदब 'इश्क़ ने बख़्शा कि हमें
मुद्दतों बात न करना आया
दिल पे अपने जो पड़ी ज़र्ब 'ज़िया'
टूट कर हम को बिखरना आया
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