दिल उस की दस्तरस से दूर है क्या
By nomaan-shauqueFebruary 27, 2024
दिल उस की दस्तरस से दूर है क्या
ये मुजरिम आज भी मफ़रूर है क्या
ये दुनिया बोझ बनती जा रही है
तिरा 'आशिक़ कोई मज़दूर है क्या
मैं अपने सच पे शर्मिंदा नहीं हूँ
तुम्हें ये आइना मंज़ूर है क्या
मोहब्बत वाले हैं कितने ज़मीं पर
अकेला चाँद ही बे-नूर है क्या
मैं अपनी तरह से दिल हारता हूँ
मोहब्बत का कोई मंशूर है क्या
डराते हो ख़ुदा का नाम ले कर
ये बंदा इस क़दर मजबूर है क्या
ये मुजरिम आज भी मफ़रूर है क्या
ये दुनिया बोझ बनती जा रही है
तिरा 'आशिक़ कोई मज़दूर है क्या
मैं अपने सच पे शर्मिंदा नहीं हूँ
तुम्हें ये आइना मंज़ूर है क्या
मोहब्बत वाले हैं कितने ज़मीं पर
अकेला चाँद ही बे-नूर है क्या
मैं अपनी तरह से दिल हारता हूँ
मोहब्बत का कोई मंशूर है क्या
डराते हो ख़ुदा का नाम ले कर
ये बंदा इस क़दर मजबूर है क्या
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