दिलबर को दिलबरी सूँ मना यार कर रखूँ

By alimullahJune 3, 2024
दिलबर को दिलबरी सूँ मना यार कर रखूँ
पीतम को अपने पीत सूँ गुलहार कर रखूँ
एक नौम सूँ जगाऊँ अगर मुर्दा दिल के तईं
ता-हश्र याद-ए-हक़ मने बेदार कर रखूँ


रहता है दिल हर एक का हर एक काम में
अपना ख़याल सूरत-ए-परकार कर रखूँ
दिस्ता है मुझ को यार का रुख़्सार-ए-गुल-इज़ार
तिस की ख़ुशी सूँ तब' को गुलज़ार कर रखूँ


मनके को मन के लाऊँ फिराने का जब ख़याल
तस्बीह बदन की तोड़ के एक तार कर रखूँ
पीतम के बाज नहीं है मिरा इख़्तियार कुछ
मुझ दिल को तिस के अम्र में मुख़्तार कर रखूँ


बे-सर अगर अछे तो उसे सर करूँ 'अता
दोनों जहाँ में साहिब-ए-असरार कर रखूँ
अंधे के तईं 'अलीम' लगा इश्क़ का अँजन
सब वासिलाँ में वासिल-ए-दीदार कर रखूँ


64813 viewsghazalHindi