दिल-ओ-जाँ हम निसार करते हैं वो निगाहों से वार करते हैं हाल-ए-दिल जब उन्हें सुनाता हूँ आँख वो अश्क-बार करते हैं हम ने उन से कभी गिला न किया वो तो शिकवे हज़ार करते हैं आ भी जाओ कि ताब-ए-ज़ब्त नहीं हर घड़ी इंतिज़ार करते हैं आँख उन से लड़ी है जब 'अख़्तर' गुल-ओ-बुलबुल सा प्यार करते हैं