दिन हो कि रात, कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़ आलाम-ए-रोज़गार से हासिल नहीं फ़राग़ रग़बत किसे कि लीजिए ऐश-ओ-तरब का नाम फ़ुर्सत कहाँ कि कीजिए सहबा से पुर अयाग़ वीराना-ए-हयात में आसूदा-ख़ातिरी किस को मिला इस आहु-ए-रम-ख़ुर्दा का सुराग़ आसार-ए-कू-ए-दोस्त हैं और पा-शिकस्तगी ख़ुशबू-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है और हम से बे-दिमाग़ किस की जबीं पे हैं ये सितारे अरक़ अरक़ किस के लहू से चाँद का दामन है दाग़ दाग़ करते हैं कस्ब-ए-नूर इसी तीरगी से हम 'अंजुम' हैं दिल के दाग़ गुहर-हा-ए-शब-चराग़