दिन के लम्हों में मिरे दिल की सदा है कोई शब की ज़ुल्मत में तबस्सुम की ज़िया है कोई चलिए अच्छा है मिरे पीछे पड़ा है कोई मेरे बारे में तो कुछ सोच रहा है कोई साँस लेने नहीं देती है मसाइल की चुभन ज़िंदगानी की सज़ा काट रहा है कोई क्या तिरी आँख की गहराई में शो'ले हैं निहाँ किस तरह झील के पानी से जला है कोई 'इल्तिफ़ात' उस की जबीं पर है तक़द्दुस की चमक जब से किरदार के साँचे में ढला है कोई