दिन के साथ उतर जाती हूँ
By janan-malikNovember 2, 2020
दिन के साथ उतर जाती हूँ
शाम के पार ठहर जाती हूँ
उस से बिछड़ने के उस पल को
सोचती हूँ तो मर जाती हूँ
सहरा जितनी प्यास है मेरी
और इक बूँद से भर जाती हूँ
मेरा हाथ ये पकड़े रहना
मैं ख़्वाबों में डर जाती हूँ
मियाँ मोहम्मद मैं तो अपनी
गागर भर के घर जाती हूँ
अपने आप से हाथ छुड़ा कर
मैं किन रस्तों पर जाती हूँ
शाम के पार ठहर जाती हूँ
उस से बिछड़ने के उस पल को
सोचती हूँ तो मर जाती हूँ
सहरा जितनी प्यास है मेरी
और इक बूँद से भर जाती हूँ
मेरा हाथ ये पकड़े रहना
मैं ख़्वाबों में डर जाती हूँ
मियाँ मोहम्मद मैं तो अपनी
गागर भर के घर जाती हूँ
अपने आप से हाथ छुड़ा कर
मैं किन रस्तों पर जाती हूँ
27334 viewsghazal • Hindi