डूबते डूबते सूरज ने ज़ियाएँ दीं हैं तेरी यादों ने बहुत दिल को सदाएँ दीं हैं ये अदालत किसी तहरीर की मुहताज नहीं वक़्त ने हर कस-ओ-ना-कस को सज़ाएँ दीं हैं ज़िंदगी तुझ को बरहना नहीं रक्खा है कभी हम ने हर दर्द को लफ़्ज़ों की क़बाएँ दीं हैं सिर्फ़ फ़य्याज़ी के क़िस्से न मुअर्रिख़ लिखना बुझते शो'लों को भी तो उस ने हवाएँ दीं हैं शायरी यूँही नहीं पुख़्ता मिरी ऐ 'शौकी' मेरे उस्ताद ने कुछ ऐसी दुआएँ दीं हैं