डूबते डूबते सूरज ने ज़ियाएँ दीं हैं
By aamir-shauqiOctober 6, 2022
डूबते डूबते सूरज ने ज़ियाएँ दीं हैं
तेरी यादों ने बहुत दिल को सदाएँ दीं हैं
ये अदालत किसी तहरीर की मुहताज नहीं
वक़्त ने हर कस-ओ-ना-कस को सज़ाएँ दीं हैं
ज़िंदगी तुझ को बरहना नहीं रक्खा है कभी
हम ने हर दर्द को लफ़्ज़ों की क़बाएँ दीं हैं
सिर्फ़ फ़य्याज़ी के क़िस्से न मुअर्रिख़ लिखना
बुझते शो'लों को भी तो उस ने हवाएँ दीं हैं
शायरी यूँही नहीं पुख़्ता मिरी ऐ 'शौकी'
मेरे उस्ताद ने कुछ ऐसी दुआएँ दीं हैं
तेरी यादों ने बहुत दिल को सदाएँ दीं हैं
ये अदालत किसी तहरीर की मुहताज नहीं
वक़्त ने हर कस-ओ-ना-कस को सज़ाएँ दीं हैं
ज़िंदगी तुझ को बरहना नहीं रक्खा है कभी
हम ने हर दर्द को लफ़्ज़ों की क़बाएँ दीं हैं
सिर्फ़ फ़य्याज़ी के क़िस्से न मुअर्रिख़ लिखना
बुझते शो'लों को भी तो उस ने हवाएँ दीं हैं
शायरी यूँही नहीं पुख़्ता मिरी ऐ 'शौकी'
मेरे उस्ताद ने कुछ ऐसी दुआएँ दीं हैं
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